मेरा एक घर था घरोंदा था आशिअना था
बड़ा छोटा था और बेहद पुराना था
अब रेत के किले में बैठ कर याद करता हूँ
वो बारिश कि बूँदें
वो चीटियों जैसी गाड़ियों कि कतारें
कोई किसी जल्दी में नहीं
सबको ये यकीन कि पह्नुचेंगी कहीं
मैं चाहता था तेज़ रफ्तार
तेज़ ज़िंदगी, तेज़ और तेज़
अब उस तेज़ी में गिरफ्तार
याद करता हूँ वो धीरी पकती दल
पड़ा था जिसमें सालों का प्यार
वह हस्ती सुबह वह झिलमिल दोपहर
यहाँ बस तेज़ रौशनी है
बदन कटती धुप दिल चीरती हवाएं
सब धोके का सहारा लेते हैं
झूटी सर्द से घरों को ठंडा करते हैं
फिर भी दिल जलते हैं
रेत का क्या पता, कुछ ठोस नहीं होता
बंजर ज़मीन पर बंजर सुनसान इमारतें
इमारतें हैं घर नहीं हैं
मेरी खिड़की से दिखती ज़िंदगी
बिकती बनती बिगड़ती पा इन्दगी
शीशे से सब कितना दूर सा लगता है
या दिखता है अपनी ज़िंदगी का अक्स
ये चुब्ती है वो नर्म कितनी थी
ये रेत है और वो मिटटी थी
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4 comments:
hi nice one ..
btw how you managed to write in hindi ...
All you need to do is to activate typing in hindi when creating a post. There is a toolbar on top which has the function.
beautiful!! i am speechless!!
Happened to read Memories from Dubai, today. Very well written, but don't you miss the place even a little?
Woh pak rait (chubti zaroor thi) se wudhu karna, woh har kissi ka milte hi salam karna, wahan dur rehkar apne mulk ko aur chahna. Bahut yaad ata hain sab!
Been 2 years since u posted this peom, but I read it just today - so the comment :)
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